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Showing posts from July, 2018

परिक्रमा का महत्व

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भगवान की परिक्रमा क्यों और कितनी जब हम मंदिर जाते है तो हम भगवान की परिक्रमा जरुर लगाते है. पर क्या कभी हमने ये सोचा है कि देव मूर्ति की परिक्रमा क्यो की जाती है? शास्त्रों में लिखा है जिस स्थान पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई हो, उसके मध्य बिंदु से लेकर कुछ दूरी तक दिव्य प्रभा अथवा प्रभाव रहता है,यह निकट होने पर अधिक गहरा और दूर दूर होने पर घटता जाता है, इसलिए प्रतिमा के निकट परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मडल से निकलने वाले तेज की सहज ही प्राप्ती हो जाती है. कैसे करे परिक्रमा देवमूर्ति की परिक्रमा सदैव दाएं हाथ की ओर से करनी चाहिए क्योकि दैवीय शक्ति की आभामंडल की गति दक्षिणावर्ती होती है।बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मडल की गति और हमारे अंदर विद्यमान दिव्य परमाणुओं में टकराव पैदा होता है, जिससे हमारा तेज नष्ट हो जाता है.जाने-अनजाने की गई उल्टी परिक्रमा का दुष्परिणाम भुगतना पडता है. किस देव की कितनी परिक्रमा करनी चाहिये ? वैसे तो सामान्यत: सभी देवी-देवताओं की एक ही परिक्रमा की जाती है परंतु शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं के लिए
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क्या है महामृत्युंजय जाप ?? श्रावण के महीने में महामृत्युंजय करने से समस्त नवग्रह की शांति हो जाती है भविष्य में आने वाली सभी समस्या का समाधान हो जाता है जिनके घर महामृत्युंजय की पूजा होती है उस घर में भगवान शिव का वास होता है इस कारण उस घर में भूत-प्रेत कभी नहीं आते दुख दरिद्र कभी नहीं आते भगवान शिव की कृपा से घर में शांति बनी रहती है !!  **** घर का कोई सदस्य किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त है और समझती इलाज कराने के बाद में भी स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है तो भगवान मृत्युंजय का जाप घर में कराना चाहिए ***जिन घर में आर्थिक तंगी चल रही है प्रयास करने के बाद में भी नौकरी नहीं लग पा रही जॉब के लिए परेशान हो रहै है वह व्यक्ति कहीं मृत्युंजय का जाप करा ले तो उसके घर में धन धान्य की वृद्धि होगी *रुद्राभिषेक- विधान-एक सम्पूर्ण जानकारी-* रूद्र अर्थात भूत भावन शिव का अभिषेक शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही रुद्र कहा जाता है क्योंकि- *रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:* यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए
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#शिवलिंग_पर_कौन_सा_अनाज_चढ़ने_से_क्या_फल_मिलता_है =================== हिन्दू धर्म में भगवान शंकर सांसारिक सुखों से जुड़े सारे मनोरथ पूरे करने वाले देवता हैं। उनकी प्रसन्नता के लिए धर्मग्रंथों में कई व्रत-उपवास बताए गए हैं। कई भक्त अलग-अलग वजहों से व्रत के धार्मिक विधानों का पालन नहीं कर पाते।  इसलिए ऐसे भक्तों के लिए जो व्रत नहीं रख पाते हैं। शिवपुराण में बताए अलग-अलग अनाज का चढ़ावा सुख-सौभाग्य व धन सहित कई मनचाहे फल देने वाला माना गया है। इन उपायों से पहले भगवान शिव की सामान्य पूजा यानी चंदन, बिल्वपत्र, फूल, छोटा सफेद वस्त्र चढ़ाकर करें और इनके साथ यहां बताए अनाज व फूल शिवलिंग पर चढ़ाएं। इन चीजों से कामना विशेष पूरी करते हैं। जानिए कौन सा अनाज व फूल चढ़ाने का उपाय कौन सी चाहत पूरी करता है। इनको चढ़ाते वक्त ये मंत्र स्मरण करना शुभ होगा- मृत्युंजयाय रुद्राय नीलाकंताया शम्भवे। अमृतेशाय सर्वाय महादेवाय ते नमः।। - देव पूजा में अक्षत यानी चावल का चढ़ावा बहुत ही शुभ माना जाता है। शिव पूजा में भी महादेव या शिवलिंग के ऊपर चावल, जो टूटे न हो चढ़ाने से लक्ष्मी की कृपा यानी धन लाभ ह
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*"अमावस्या और पूर्णिमा का रहस्य"।* ****************************** हिन्दू धर्म में पूर्णिमा, अमावस्या और ग्रहण के रहस्य को उजागर किया गया है। इसके अलावा वर्ष में ऐसे कई महत्वपूर्ण दिन और रात हैं,जिनका धरती और मानव मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उनमें से ही माह में पड़ने वाले 2 दिन सबसे महत्वपूर्ण हैं ~ पूर्णिमा और अमावस्या। पूर्णिमा और अमावस्या के प्रति बहुत से लोगों में डर है। खासकर अमावस्या के प्रति ज्यादा डर है। वर्ष में 12 पूर्णिमा और 12 अमावस्या होती हैं। सभी का अलग-अलग महत्व है। || माह के 30 दिन को चन्द्र कला के आधार पर 15-15 दिन के 2 पक्षों में बांटा गया है ~ *'शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष'*। शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते हैं और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या। || यदि शुरुआत से गिनें तो 30 तिथियों के नाम निम्न हैं~पूर्णिमा(पुरणमासी), प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और
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        शुरू होगया सावन, जानें शिव पूजन विधि 28 जुलाई 2018 भगवान शिव को करें प्रसन्न और पाएँ वरदान! 28 जुलाई 2018 से श्रावण मास की शुरुआत हो रही है। जानें भगवान शिव को प्रिय इस माह की महिमा और महत्व! श्रावण मास हिन्दू धर्म में श्रावण मास का विशेष महत्व है, विशेष रूप से भगवान शिव की आराधना के लिए। क्योंकि सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह से प्रारंभ होने वाले वर्ष का पांचवां महीना श्रावण मास है। इंग्लिश कैलेंडर के अनुसार सावन का महीना जुलाई या अगस्त माह में आता है। श्रावण मास का आगमन वर्षा ऋतु के समय में होता है। यह वह समय होता है जब धरती पर चारों ओर हरियाली ही हरियाली होती है। सावन में स्नान और भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने का बड़ा महत्व है। सावन के सोमवार की तारीख सावन के सोमवार दिनांक सावन माह प्रारंभ 28 जुलाई 2018 सावन का पहला सोमवार  30 जुलाई 2018 सावन का दूसरा सोमवार 6 अगस्त 2018 सावन का तीसरा सोमवार 13 अगस्त 2018 सावन का चौथा सोमवार 20 अगस्त 2018 सावन माह का अंतिम दिन 26 अगस्त 2018 सावन सोमवार व्रत व पूजा विधि
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वैभव लक्ष्मी व्रत विधि* वैभव लक्ष्मी व्रत विधि, ऐसे करें वैभव लक्ष्मी का व्रत सुख- समृद्धि, धन, ऐश्वर्य, वैभव, व् अन्य इच्छाओ की पूर्ति के लिए वैभव लक्ष्मी का व्रत किया जाता है। इस व्रत की शुरुआत आप किसी भी शक्रवार को कर सकते है, और व्रत की शुरुआत में आपको ग्यारह या इक्कीस व् अपनी इच्छानुसार व्रत की मन्नत करनी चाहिए और संकल्प लेना चाहिए। इस व्रत को रखने पर यदि आप बीच में किसी कारण व्रत नहीं रख पाएं हैं तो उसे शुक्रवार व्रत की गिनती में न लेते हुए आपको अगले शुक्रवार को व्रत करना चाहिए। और इस व्रत को रखने पर आपको अपने घर में ही पूजा करनी चाहिए, यदि आपको कहीं बाहर जाना पड़ता है तो व्रत नहीं करना चाहिए। इस व्रत को कोई भी स्त्री, पुरुष, कुँवारी लड़की कोई भी कर सकता है। वैभव लक्ष्मी के व्रत को वरदलक्ष्मी का व्रत भी कहा जाता है। ऐसा भी कहा जाता है की वैभव लक्ष्मी की कथा को सुनने से भी आपको बहुत फल मिलता है। माँ लक्ष्मी के अनेक रूपों में वैभव लक्ष्मी भी आपकी सभी परेशानियों का समाधान करने में आपकी मदद करती है। तो आइये अब जानते हैं की वैभव लक्ष्मी का व्रत रखने के क्या नियम होते है, और इस
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                    16 सोमवार व्रत नियम 16 सोमवार का व्रत श्रावण, चैत्र, वैसाख, कार्तिक और माघ महीने के शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार से शुरू किया जाता है। मान्यता है इस व्रत को लगातार 16 सोमवार तक श्रद्धापूर्वक रखने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। और उसे जीवन में किसी भी कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता। इसीलिए आज हम आपको 16 व्रत विधि, उसके नियम और उससे मिलने वाले फल के बारे में विस्तार से बताने जा रहे है। 16 सोमवार व्रत नियम और विधि :- इस व्रत को करने के लिए आप सुबह नहा धोकर आधा सेर गेहूं का आटा को घी में भून कर गुड़ मिला कर अंगा बना लें। उसके बाद इस प्रसाद को तीन भागो में बात लें। उसके बाद दीप, नैवेद्य, पूंगीफ़ल, बेलपत्र, धतूरा, भांग, जनेउ का जोड़ा, चंदन, अक्षत, पुष्प, आदि से प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा अर्चना करें, और अपनी मनोकामना के बारे में कहें। पूजा करने के बाद कथा करें, आरती करें, उसके बाद एक अंग भगवान् शिव को अर्पण करके उसका भोग लगाएं, और बाकी दो को बात दें, और खुद भी उसे प्रसाद स्वरुप ग्रहण करें।   16 सोमवार व्रत की कथा सावन की पहली सोमवारी को ऐसे करे
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*🕉जय माँ काली जय महाकाल🕉*         *आपका दिन मंगलमय हो* *।।पूजा से जुड़ी हुईं अति महत्वपूर्ण बातें।।* ★ एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए। ★ सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए। ★ बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें। ★ जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं। ★ जप करते समय दाहिने हाथ को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए। ★ जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए। ★ संक्रान्ति, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं। ★ दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए। ★ यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं। ★ शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है, ★ कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं। ★ भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए।
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श्रावण मास का आध्यात्मिक महत्त्व 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 श्रावण अथवा सावन हिंदु पंचांग के अनुसार वर्ष का पाँचवा महीना ईस्वी कलेंडर के जुलाई या अगस्त माह में पड़ता है। इसे वर्षा ऋतु का महीना या 'पावस ऋतु' भी कहा जाता है, क्योंकि इस समय बहुत वर्षा होती है। इस माह में अनेक महत्त्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं, जिसमें 'हरियाली तीज', 'रक्षाबन्धन', 'नागपंचमी' आदि प्रमुख हैं। 'श्रावण पूर्णिमा' को दक्षिण भारत में 'नारियली पूर्णिमा' व 'अवनी अवित्तम', मध्य भारत में 'कजरी पूनम', उत्तर भारत में 'रक्षाबंधन' और गुजरात में 'पवित्रोपना' के रूप में मनाया जाता है। त्योहारों की विविधता ही तो भारत की विशिष्टता की पहचान है। 'श्रावण' यानी सावन माह में भगवान शिव की अराधना का विशेष महत्त्व है। इस माह में पड़ने वाले सोमवार "सावन के सोमवार" कहे जाते हैं, जिनमें स्त्रियाँ तथा विशेषतौर से कुंवारी युवतियाँ भगवान शिव के निमित्त व्रत आदि रखती हैं। महादेव को प्रिय सावन 〰〰〰〰〰〰〰 सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि- &qu

चन्द्रग्रहण और राशि प्रभाव

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                    *जय श्री राधेकृष्णा जी*                   *दिनाँक  27 जुलाई  2018                         *🌘चंद्र ग्रहण🌘* *🌹104 साल बाद 27 जुलाई को ऐसा दुर्लभ चंद्रग्रहण लगने जा रहा है, जो एक राशि के जातकों के लिए घातक साबित हो सकता है। बाकी 11 राशियों पर भी खास असर रहेगा, तो इस दिन कुछ खास बातों का ध्यान रखना होगा।* *🌹आषाढ़ पूर्णिमा की रात 27 जुलाई को आधी रात में खग्रास चंद्र ग्रहण लगेगा। यह खग्रास चंद्रग्रहण भारत में दिखाई देगा। ग्रहण का सूतक दोपहर बाद 2.54 बजे प्रारंभ होगा। ग्रहण रात 11.54 मिनट से सुबह 3 बजकर 49 मिनट तक रहेगा। सूतक लगने के कारण शाम के समय मंदिर के कपाट नहीं खुलेंगे।*  *🌹यह ग्रहण आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा और उत्तराषाढ़ नक्षत्र के अंतिम दो घटी एवं श्रवण नक्षत्र के आद में खग्रास चंद्र ग्रहण होगा। उत्तराषाढ़ के चतुर्थ चरण में होने के कारण उत्तराषाढ़ के चतुर्थ चरण एवं श्रवण नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के लिए यह ग्रहण घातक है।* *🌺चंद्रग्रहण -🌺* *🌹विशेषकर मकर राशि के जातकों के लिए ग्रहण हानिकारक रहेगा। कुछ विशिष्ट व्यक्तियों ए

क्यों हे शिव पूजा का महत्व

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श्रावण  मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर कुछ विशेष वास्तु अर्पित की जाती है जिसे शिवामुट्ठी कहते है। 1. प्रथम सोमवार को कच्चे चावल एक मुट्ठी, 2. दूसरे सोमवार को सफेद तिल् एक मुट्ठी, 3. तीसरे सोमवार को खड़े मूँग एक मुट्ठी, 4. चौथे सोमवार को जौ एक मुट्ठी और 5. यदि जिस मॉस में पांच सोमवार हो तो पांचवें सोमवार को सतुआ चढ़ाने जाते हैं।  यदि पांच सोमवार  न हो तो आखरी सोमवार को दो मुट्ठी भोग अर्पित करते है। माना जाता है कि श्रावण मास में शिव की पूजा करने से सारे कष्ट खत्म हो जाते हैं। महादेव शिव सर्व समर्थ हैं। वे मनुष्य के समस्त पापों का क्षय करके मुक्ति दिलाते हैं। इनकी पूजा से ग्रह बाधा भी दूर होती है। 1. *सूर्य* से संबंधित बाधा है, तो विधिवत या पंचोपचार के बाद लाल { बैगनी } आक के पुष्प एवं पत्तों से शिव की पूजा करनी चाहिए। 2. *चंद्रमा* से परेशान हैं, तो प्रत्येक सोमवार शिवलिंग पर गाय का दूध अर्पित करें। साथ ही सोमवार का व्रत भी करें। 3. *मंगल* से संबंधित बाधाओं के निवारण के लिए गिलोय की जड़ी-बूटी के रस से शिव का अभिषेक करना लाभप्रद रहेगा। 4. *बुध* से संबंधित प

देवशयनी एकादशी व्रत का महत्व

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                    देवशयनी एकादशी 23 जुलाई 2018 सोमवार से थम जांयगे  सभी तरह के शुभ कार्य देवशयनी एकादशी और देवउठनी एकादशी खास है। देवशयनी एकादशी में जहां सारे शुभ कार्यों में विराम लग जाता है। वही देवउठनी एकादशी पर सभी शुभ कार्यो की शुरुआत हो जाती हैं। 23 जुलाई 2018 को देवशयनी एकादशी मनाई जायेगीं   जिसे हरिशयनी एकादशी भी कहते है।इस दौरान 4 माह यानी अषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक किसी भी तरह शुभ कार्य नही किये जाएगे। देवशयनी एकादशी व्रत पारण का समय 24 जुलाई 2018 को समय 05-43 से 08 24 तक  रहेगा।।    🔴🔴ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमो नमः🔴🔴 आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष की "श्री देवशयनी एकादशी" हैं; आप सभी भक्त मित्रों को इस पावन अवसर की हार्दिक शुभकामनाएं....!! "श्री देवशयनी एकादशी" को "श्री हरिशयनी एकादशी" (पद्मनाभा एकादशी तथा प्रबोधनी एकादशी) के नाम से भी जाना जाता हैं। कल से ही चातुर्मास भी आरंभ होगा, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से कार्तिक मास की एकादशी तिथि तक का समय चातुर्मास कहलाता हैं, चातुर्मास में श्रावण, भाद्रपद, आश्विन तथा
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. *"ढोल गंवार शुद्र पशु नारी, सकल तारणा के अधिकारी*    📢(कृपया पढ़ें जरूर ) *👉🏿१. ढोल (वाद्य यंत्र)-* *🗣ढोल को हमारे सनातन संस्कृति में उत्साह का प्रतीक माना गया है इसके थाप से हमें नयी ऊर्जा मिलती है. इससे जीवन स्फूर्तिमय, उत्साहमय हो जाता है. आज भी विभिन्न अवसरों पर ढोलक बजाया जाता है. इसे शुभ माना जाता है.* *👉🏿२. गंवार {गांव के रहने वाले लोग )-* *🗣गाँव के लोग छल-प्रपंच से दूर अत्यंत ही सरल स्वभाव के होते हैं. गाँव के लोग अत्यधिक परिश्रमी होते है जो अपने परिश्रम से धरती माता की कोख अन्न इत्यादि पैदा कर संसार में सबका भूख मिटाते हैं. आदि-अनादि काल से ही अनेकों देवी-देवता और संत महर्षि गण गाँव में ही उत्पन्न होते रहे हैं. सरलता में ही ईश्वर का वास होता है.* *👉🏿३. शुद्र (जो अपने कर्म व सेवाभाव से इस लोक की दरिद्रता को दूर करे)-* *🗣सेवा व कर्म से ही हमारे जीवन व दूसरों के जीवन का भी उद्धार होता है और जो इस सेवा व कर्म भाव से लोक का कल्याण करे वही ईश्वर का प्रिय पात्र होता है. कर्म ही पूजा है.* *👉🏿४. पशु (जो एक निश्चित पाश में रहकर हमारे लिए उपयोगी हो)

क्या होता हे पशु पक्षीयो के बोलने से शकुन अपशकुन

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 जानिए पशुओं  और पक्षियों का बोलना अपशकुन/अशुभ प्रभाव—– किसी कार्य या यात्रा पर जाते समय कुत्ता बैठा हुआ हो और वह आप को देख कर चौंके, तो विघ्न हो। किसी कार्य पर जाते समय घर से बाहर कुत्ता शरीर खुजलाता हुआ दिखाई दे तो कार्य में असफलता मिलेगी या बाधा उपस्थित होगी। यदि आपका पालतू कुत्ता आप के वाहन के भीतर बार-बार भौंके तो कोई अनहोनी घटना अथवा वाहन दुर्घटना हो सकती है। यदि कीचड़ से सना और कानों को फड़फड़ाता हुआ दिखाई दे तो यह संकट उत्पन्न होने का संकेत है। आपस में लड़ते हुए कुत्ते दिख जाएं तो व्यक्ति का किसी से झगड़ा हो सकता है। शाम के समय एक से अधिक कुत्ते पूर्व की ओर अभिमुख होकर क्रंदन करें तो उस नगर या गांव में भयंकर संकट उपस्थित होता है। यदि कुत्ता मकान की दीवार खोदे तो चोर भय होता है। यदि कुत्ता घर के व्यक्ति से लिपटे अथवा अकारण भौंके तो बंधन का भय उत्पन्न करता है। चारपाई के ऊपर चढ़ कर अकारण भौंके तो चारपाई के स्वामी को बाधाओं तथा संकटों का सामना करना पड़ता है। कुत्ते का जलती हुई लकड़ी लेकर सामने आना मृत्यु भय अथवा भयानक कष्ट का सूचक है। पशुओं के बांधने के स्थान को खोदे तो

कैसे करे अष्टकमल लक्ष्मी माँ को प्रसन्न

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 *शुक्रवार की रात करें यह उपाय, लक्ष्मी-कुबेर खींचे चले आएंगे आपके द्वार* पैसा खुदा तो नहीं पर खुदा से कम भी नहीं। आज के परिवेश में यह बात शत प्रतिशत खरी उतरती है। मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ी समस्या हैं गरीबी अर्थात निर्धनता। धन के अभाव में मनुष्य मान-सम्मान प्रतिष्ठा से भी वंचित रहता है। ऐसा शास्त्रों में वर्णन है की व्यक्ति को दरिद्रता दूर करने हेतु मां लक्ष्मी की आराधना करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार लक्ष्मी को चंचला कहा जाता है अर्थात जो कभी एक स्थान पर रूकती नहीं। अतः लक्ष्मी अर्थात धन को स्थायी बनाने के लिए कुछ उपाय, पूजन, आराधना, मंत्र-जाप आदि का विधान है। ऋषि विश्वामित्र के कठोर आदेश अनुसार लक्ष्मी साधना गोपनीय एवं दुर्लभ है तथा इसे गुप्त रखना चाहिए। ऐसा शास्त्रोक्त वर्णित है के समुद्र-मंथन से पूर्व सभी देवता निर्धन और ऐश्वर्य विहीन हो गए थे तथा लक्ष्मी के प्रकट होने पर देवराज इंद्र ने महालक्ष्मी की स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर महालक्ष्मी ने देवराज इंद्र को वरदान दिया कि तुम्हारे द्वारा दिए गए द्वादशाक्षर मंत्र का जो व्यक्ति नियमित रूप से प्रतिदिन तीनों संध्याओं में भक्

क्या हे प्रदोष व्रत का महत्व

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प्रदोष व्रत में क्यों किया जाता है शि‍व पूजन? प्रदोष व्रत में भगवान शिव की उपासना की जाती है. यह व्रत हिंदू धर्म के सबसे शुभ व महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है. हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13 वें दिन (त्रयोदशी) पर रखा जाता है. माना जाता है कि प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के पाप धूल जाते हैं और उसे मोक्ष प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत की महिमा शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से दो गायों को दान देने के समान पुन्य फल प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि 'एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यों को अधिक करेगा. उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है. प्रदोष व्रत से मिलने वाले फल अलग- अलग वारों के अनुसार प्रदोष व्रत के

कोण से हे 14 समुद्र रत्न

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समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों का रहस्य, जानिए ============================== यह वह समय था जबकि देवता लोग धरती पर रहते थे। धरती पर वे हिमालय के उत्तर में रहते थे। काम था धरती का निर्माण करना। धरती को रहने लायक बनाना और धरती पर मानव सहित अन्य आबादी का विस्तार करना।  देवताओं के साथ उनके ही भाई बंधु दैत्य भी रहते थे। तब यह धरती एक द्वीप की ही थी अर्थात धरती का एक ही हिस्सा जल से बाहर निकला हुआ था। यह भी बहुत छोटा-सा हिस्सा था। इसके बीचोबीच था मेरू पर्वत।  धरती के विस्तार और इस पर विविध प्रकार के जीवन निर्माण के लिए देवताओं के भी देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने लीला रची और उन्होंने देव तथा उनके भाई असुरों की शक्ति का उपयोग कर समुद्र मंथन कराया। समुद्र मंथन कराने के लिए पहले कारण निर्मित किया गया।  दुर्वासा ऋषि ने अपना अपमान होने के कारण देवराज इन्द्र को ‘श्री’ (लक्ष्मी) से हीन हो जाने का शाप दे दिया। भगवान विष्णु ने इंद्र को शाप मुक्ति के लिए असुरों के साथ 'समुद्र मंथन' के लिए कहा और दैत्यों को अमृत का लालच दिया। इस तरह हुआ समुद्र मंथन।  यह समुद्र था क्षीर सागर जि