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Showing posts from August, 2018
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सूतक/पातक विचार 〰〰🌼🌼〰〰 हमारे ऊपर आ रहे कष्टो का एक  कारण सूतक के नियमो का पालन नहीं करना भी हो सकता है। सूतक का सम्बन्ध “जन्म एवं मृत्यु  के” निम्मित से हुई अशुद्धि से है ! जन्म के अवसर पर जो ""नाल काटा"" जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया में अन्य प्रकार की जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष/पाप के प्रायश्चित स्वरुप “सूतक” माना जाता है ! जन्म के बाद नवजात की पीढ़ियों को हुई अशुचिता 3 पीढ़ी तक – 10 दिन 4 पीढ़ी तक – 10 दिन 5 पीढ़ी तक – 6 दिन ध्यान दें :- एक रसोई में भोजन करने वालों के पीढ़ी नहीं गिनी जाती … वहाँ पूरा 10 दिन का सूतक माना है ! प्रसूति (नवजात की माँ) को 45 दिन का सूतक रहता है प्रसूति स्थान 1 माह तक अशुद्ध है ! इसीलिए कई लोग जब भी अस्पताल से घर आते हैं तो स्नान करते हैं ! अपनी पुत्री 〰〰〰 पीहर में जनै तो हमे 3 दिन का, ससुराल में जन्म दे तो उन्हें 10 दिन का सूतक रहता है ! और हमे कोई सूतक नहीं रहता है ! नौकर-चाकर 〰〰〰〰 अपने घर में जन्म दे तो 1 दिन का, बाहर दे तो हमे कोई सूतक नहीं ! पालतू पशुओं का 〰〰〰〰〰 घर के पालतू गाय, भैंस,
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पञ्चाङ्ग की उपयोगिता ~~~~~~~~~~~ भारतीय पंचांग का आधार विक्रम संवत है जिसका सम्बंध राजा विक्रमादित्य के शासन काल से है। ये कैलेंडर विक्रमादित्य के शासनकाल में जारी हुआ था। इसी कारण इसे विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है। पंचाग पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं:- 1👉  तिथि (Tithi) 2:- वार (Day) 3:- नक्षत्र (Nakshatra) 4:- योग (Yog) 5:- करण (Karan) पंचाग का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग का श्रवण करते थे । 👉 शास्त्रों के अनुसार तिथि के पठन और श्रवण से माँ लक्ष्मी की कृपा मिलती है । 👉 वार के पठन और श्रवण से आयु में वृद्धि होती है। 👉 नक्षत्र के पठन और श्रवण से पापो का नाश होता है। 👉 योग के पठन और श्रवण से प्रियजनों का प्रेम मिलता है। उनसे वियोग नहीं होता है । 👉 करण के पठन श्रवण से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है । इसलिए हर मनुष्य को जीवन में शुभ फलो की प्राप्ति के लिए नित्य पंचांग को देखना और बोल कर पढ़ना चाहिए। चन्द्रमा की एक कला को एक तिथि माना जाता है जो उन्नीस घंटे से 24 घंटे तक की होती है । अमावस

राशि के अनुसार कौन से रंग की राखी बांधें-मिठाई खिलाएं

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भाई की उन्नति और यश चाहती हैं तो बहनें राशिनुसार बांधें राखी***  ************* रक्षाबंधन यानी पवित्र रिश्ते का पर्व। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर रंग-बिरंगी राखियां बांध अपना स्नेह, आशीर्वाद और रक्षा की कामना करती हैं। ऐसे तो रक्षासूत्र के सभी रंग अच्छे होते हैं, परंतु यदि राशि के अनुसार रंग की राखी बांधी जाए तो वह विशेष लाभदायी होता है। तो आइए, जानते हैं कौन सी राशि वाले भाई को कौन से रंग की राखी बांधें... मेष : भाई की राशि मेष है तो मालपुए खिलाएं एवं लाल रंग की राखी बांधें। वृषभ : दूध से निर्मित मिठाई खिलाएं एवं सफेद रेशमी डोरी वाली राखी बांधे। मिथुन : बेसन से निर्मित मिठाई खिलाएं एवं हरी रंग की राखी बांधे। कर्क : रबड़ी खिलाएं एवं पीली रेशम वाली राखी बांधें सिंह : रस वाली मिठाई खिलाएं एवं गुलाबी रंग या पंचरंगी डोरे वाली राखी बांधें कन्या : मोतीचूर के लड्डू खिलाएं एवं गणेश जी के प्रतीक हरे रंग वाली राखी बांधें तुला : हलवा या घर में निर्मित मिठाई खिलाएं एवं सफेद रंग या रेशमी हल्के पीले डोरे वाली राखी बांधें वृश्चिक : गुड़ से बनी मिठाई खिलाएं एवं गुलाबी डोरे
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         हवन में आहुति देते समय क्यों कहते है ‘स्वाहा’ 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️ अग्निदेव की दाहिकाशक्ति है ‘स्वाहा’ अग्निदेव में जो जलाने की तेजरूपा (दाहिका) शक्ति है, वह देवी स्वाहा का सूक्ष्मरूप है। हवन में आहुति में दिए गए पदार्थों का परिपाक (भस्म) कर देवी स्वाहा ही उसे देवताओं को आहार के रूप में पहुंचाती हैं, इसलिए इन्हें ‘परिपाककरी’ भी कहते हैं। सृष्टिकाल में परब्रह्म परमात्मा स्वयं ‘प्रकृति’ और ‘पुरुष’ इन दो रूपों में प्रकट होते हैं। ये प्रकृतिदेवी ही मूलप्रकृति या पराम्बा कही जाती हैं। ये आदिशक्ति अनेक लीलारूप धारण करती हैं। इन्हीं के एक अंश से देवी स्वाहा का प्रादुर्भाव हुआ जो यज्ञभाग ग्रहणकर देवताओं का पोषण करती हैं। स्वाहा के बिना देवताओं को नहीं मिलता है भोजन सृष्टि के आरम्भ की बात है, उस समय ब्राह्मणलोग यज्ञ में देवताओं के लिए जो हवनीय सामग्री अर्पित करते थे, वह देवताओं तक नहीं पहुंच पाती थी। देवताओं को भोजन नहीं मिल पा रहा था इसलिए उन्होंने ब्रह्मलोक में जाकर अपने आहार के लिए ब्रह्माजी से प्रार्थना की। देवताओं की बात सुनकर ब्रह्माजी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया। भग
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*जानें कहां से आया भोलेनाथ के पास त्रिशूल, डमरू और नाग?-* सागर. भगवान श‌िव का ध्यान करने मात्र से मन में जो एक छव‌ि उभरती है वो एक वैरागी पुरुष की। इनके एक हाथ में त्र‌िशूल, दूसरे हाथ में डमरु, गले में सर्प माला, स‌िर पर त्र‌िपुंड चंदन लगा हुआ है। कहने का मतलब है क‌ि श‌िव के साथ ये 4 चीजें जुड़ी हुई हैं। आप दुन‌िया में कहीं भी चले जाइये आपको श‌िवालय में श‌िव के साथ ये 4 चीजें जरुर द‌‌िखेगी। क्या यह श‌िव के साथ ही प्रकट हुए थे या अलग-अलग घटनाओं के साथ यह श‌िव से जुड़ते गए।  श‌िव के साथ इनका संबंध कैसे बना और यह श‌िव जी से कैसे जुड़ी... *श‌िव जी का त्र‌िशूल -* भगवान श‌िव सर्वश्रेष्ठ सभी प्रकार के अस्‍त्र-शस्‍त्रों के ज्ञाता हैं लेक‌िन पौराण‌िक कथाओं में इनके दो प्रमुख अस्‍त्रों का ज‌िक्र आता है एक धनुष और दूसरा त्र‌िशूल। भगवान श‌िव के धनुष के बारे में तो यह कथा है क‌ि इसका आव‌िष्कार स्वयं श‌िव जी ने क‌िया था। लेक‌िन त्र‌िशूल कैसे इनके पास आया इस व‌िषय में कोई कथा नहीं है। माना जाता है क‌ि सृष्ट‌ि के आरंभ में ब्रह्मनाद से जब श‌िव प्रकट हुए तो साथ ही रज, तम, सत यह तीनों गुण भी प्र
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नाग पंचमी की कथा, नाग मन्त्र एवम् स्तोत्र मित्रों, 15 अगस्त 2018 को नाग पंचमी का पर्व है जो देश भर में मनाया जाता है। प्रान्त अनुसार पूजन के तरिको में कुछ फर्क हो सकता है किन्तु महत्व सब जगह एक समान ही है। कहीं घरके मन्दिर आले में स्थापना गेरू चन्दन से की जाती है तो कहीं द्वार पर। कहीं मूर्ति पूजी जाती है तो कहीं बाम्बी। कहीं पञ्च नाग , कहीं अष्ट नाग तो कहीं 9 नाग पूजे जाते है । प्रस्तुत है नाग पंचमी की कथा, नाग मन्त्र एवम् स्तोत्र नागपंचमी का पौराणिक कथा एवं इतिहास : सत्य सनातन धर्म (आज के हिन्दू) ग्रन्थों व पुराणों के अनुसार, राक्षसों और देवताओं में संधि के उपरांत दोनों ने मिलकर समुद्र मंथन किया । इस मंथन से अनेकों तत्व सहित अत्यन्त श्वेत उच्चैःश्रवा नमक एक अश्व भी निकला। जिसे देखकर नाग माता कदू्र अपनी सौतन विनता को बोली की देखो, यह अश्व सफेद है, परन्तु इसके बाल काले दिखाई पड़ते हैं। विनता ने कहा नहीं, न तो यह अश्व श्वेत रंग का है न ही काला। इतना सुनकर कदू्र ने बोली आप मेरे साथ चाहो तो शर्त लगा लो जो भी शर्त हारेगी वो दूसरे की दासी बन होगी । विनता सत्य बोल रही थी अतएव उस
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शिव का पंचाक्षरी मंत्र है – ‘नमः शिवाय’ । यजुर्वेद  के रुद्राध्याय में ११ अनुवाक में से एक अनुवाक (एक वर्ग) में ‘नमः शिवाय’ शब्द हैं, जहां से यह मंत्र लिया गया है । इसी के प्रारंभ में प्रणव जोडने पर ‘ॐ नमः शिवाय’ का षडक्षरी मंत्र बनता है । १. अर्थ अ. ‘नमः शिवाय’ मंत्र के प्रत्येक अक्षर का आध्यात्मिक अर्थ न · समस्त लोकों के आदिदेव मः · परम ज्ञान देनेवाले एवं पापों का क्षालन करनेवाले शि · कल्याणकारी, शांत एवं शिव अनुग्रह का निमित्त वा · वृषभवाहन, वासुकि एवं वामांगी शक्ति का सूचक य · परमानंदरूप एवं शिव का शुभ निवासस्थान इसलिए इन पांच अक्षरों को हमारा नमस्कार है । नटराज शिव के तांडवनृत्य से भी उपर्युक्त मंत्र के पांच अक्षरों का संबंध दिखाया गया है, जो इस प्रकार है – न · अग्नियुक्त हाथ मः · मुयलक दैत्य को कुचलनेवाला पैर शि · डमरूहस्त वा · फैला हुआ हाथ य · अभयहस्त ईश्वर, शक्ति, आत्मा, अंतर्धान एवं पापनिवारण, इस प्रकार भी इन पांच अक्षरों का अनुक्रम में अर्थ बताया गया है ।’ आ. ‘ॐ नमः शिवाय ।’ का अर्थ इस प्रकार है – `ॐ’ (निर्गुण) की ओर से `नमः शिवाय’ (सगुण) की ओर आना ।
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*शिव लिंग के 20 प्रकार एवं महत्त्व का वर्णन....* 1. मिश्री(चीनी) से बने शिव लिंग कि पूजा से रोगो का नाश होकरसभी प्रकार से सुखप्रद होती हैं। 2. सोंठ, मिर्च, पीपल के चूर्ण में नमक मिलाकर बने शिवलिंग कि पूजासे वशीकरण और अभिचार कर्म के लिये किया जाता हैं। 3. फूलों से बने शिव लिंग कि पूजा से भूमि-भवन कि प्राप्ति होती हैं। 4. जौं, गेहुं, चावल तीनो का एक समान भाग में मिश्रण कर आटे केबने शिवलिंग कि पूजा से परिवार में सुख समृद्धि एवं संतान का लाभहोकर रोग से रक्षा होती हैं। 5. किसी भी फल को शिवलिंग के समान रखकर उसकी पूजा करने सेफलवाटिका में अधिक उत्तम फल होता हैं। 6. यज्ञ कि भस्म से बने शिव लिंग कि पूजा से अभीष्ट सिद्धियां प्राप्तहोती हैं। 7. यदि बाँस के अंकुर को शिवलिंग के समान काटकर पूजा करने सेवंश वृद्धि होती है। 8. दही को कपडे में बांधकर निचोड़ देने के पश्चात उससे जो शिवलिंगबनता हैं उसका पूजन करने से समस्त सुख एवं धन कि प्राप्ति होतीहैं। 9. गुड़ से बने शिवलिंग में अन्न चिपकाकर शिवलिंग बनाकर पूजाकरने से कृषि उत्पादन में वृद्धि होती हैं। 10. आंवले से बने शिवलिंग का रुद्राभिषेक क
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           क्या देवता भोग ग्रहण करते है ? ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ हिन्दू धर्म में भगवान् को भोग लगाने का विधान है ... क्या सच में देवतागण भोग ग्रहण करते ? हां , ये सच है ..शास्त्र में इसका प्रमाण भी है .. गीता में भगवान् कहते है ...'' जो भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है , उस शुध्द बुध्दी निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेम पूर्वक अर्पण किया हुआ , वह पत्र पुष्प आदि मैं ग्रहण करता हूँ ...गीता ९/२६ अब वे खाते कैसे है , ये समझना जरुरी है हम जो भी भोजन ग्रहण करते है , वे चीजे पांच तत्वों से बनी हुई होती है ....क्योकि हमारा शरीर भी पांच तत्वों से बना होता है ..इसलिए अन्न, जल, वायु, प्रकाश और आकाश ..तत्व की हमें जरुरत होती है , जो हम अन्न और जल आदि के द्वारा प्राप्त करते है ... देवता का शरीर पांच तत्वों से नहीं बना होता , उनमे पृथ्वी और जल तत्व नहीं होता ...मध्यम स्तर के देवताओ का शरीर तीन तत्वों से तथा उत्तम स्तर के देवता का शरीर दो तत्व --तेज और आकाश से बना हुआ होता है ...इसलिए देव शरीर वायुमय और तेजोमय होते है ... यह देवता वायु
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*🚩ॐ🚩*ध्यान रखें आप अपने घर में शिवलिंग स्थापित करने के बारे में सोच रहे हैं तो रखें कुछ बातों का ध्यान, फायदे में रहेंगे! """"""" भगवन शिव के बारे में तो आप जानते ही हैं, वह बहुत ही दयालु भी हैं और क्रोधी स्वाभाव के भी हैं। जो उन्हें सच्चे मन से याद करता है, उसकी पुकार वह तुरंत सुन लेते हैं। अगर आपने भी अपने घर में शिवलिंग स्थापित किया हुआ है या करने के बारे में सोच रहे हैं, तो कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत ही जरुरी है। आप तो जानते ही हैं कि भगवन शिव जब क्रोधित हो जाते हैं, तो वह पूरी पृथ्वी का विनाश करने की क्षमता रखते हैं। ऐसे में कोई ऐसा काम ना करें या कोई ऐसी चीज चढ़ावे के रूप में ना चढ़ाएँ जो उन्हें पसंद ना हो। आज हम आपको कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं, जो शिवलिंग के साथ नहीं करनी चाहिए। शिवलिंग के साथ ऐसा भूलकर भी ना करें..... कोने में ना रखें:- शिवलिंग अगर घर में स्थापित कर रहे हैं तो उसे भूलकर भी कोने में या किसी ऐसी जगह ना रखें जहाँ आप उसकी पूजा ना कर पायें। ऐसा करने से भगवन शिव क्रोधित हो जाते हैं, और उनके क्रोध से बचना मुश्किल