🌷 *भैरव अष्टमी - 29 नवंबर दिन गुरुवार* 🌷 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 धर्म ग्रंथों के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने कालभैरव का अवतार लिया था। इसलिए इस पर्व को कालभैरव जयंती को रूप में मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 29 नवंबर 2018, दिन गुरुवार को है । यह दिन भगवान भैरव और उनके सभी रूपों के समर्पित होता है। भगवान भैरव के मुख्य 8 रूप माने जाते हैं। उन रूपों की पूजा करने से भगवान अपने सभी भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें अलग-अलग फल प्रदान करते हैं। *भगवान भैरव के 8 रूप* *1. कपाल भैरव* इस रूप में भगवान का शरीर चमकीला है, उनकी सवारी हाथी है । कपाल भैरव एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे में तलवार तीसरे में शस्त्र और चौथे में पात्र पकड़े हैं। भैरव के इन रुप की पूजा अर्चना करने से कानूनी कारवाइयां बंद हो जाती है । अटके हुए कार्य पूरे होते हैं । *2. क्रोध भैरव* क्रोध भैरव गहरे नीले रंग के शरीर वाले हैं और उनकी तीन आंखें हैं । भगवान के इस रुप का वाहन गरुण हैं और ये दक्षिण-पश्चिम दिशा के स्वामी माने जा
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मौली क्या है, क्यों है इसका इतना धार्मिक महत्व.......... येन बद्धो बलीराजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे माचल माचल।। मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा है। यज्ञ के दौरान इसे बांधे जाने की परंपरा तो पहले से ही रही है, लेकिन इसको संकल्प सूत्र के साथ ही रक्षा-सूत्र के रूप में तब से बांधा जाने लगा, जबसे असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था। इसे रक्षाबंधन का भी प्रतीक माना जाता है, जबकि देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए यह बंधन बांधा था। मौली को हर हिन्दू बांधता है। इसे मूलत: रक्षा सूत्र कहते हैं। मौली का अर्थ : 'मौली' का शाब्दिक अर्थ है 'सबसे ऊपर'। मौली का तात्पर्य सिर से भी है। मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं। इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है। मौली के भी प्रकार हैं। शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान है इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है। मौली बांधने का मंत्र : ‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।’
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ये 15 तरह के दीपक आपके हर तरह के कष्टों को दूर कर देंगे दीपावली पर अकसर चारों ओर दीपक जलाए जाते हैं, हालांकि सभी घरों में दीपावली के अलावा प्रतिदिन पूजाघर में दीपक जलाए जाने का प्रचलन है। दीपक जलाना बहुत ही शुभ होता है। कहते हैं कि इसको जलाने के कई तरह के कष्ट दूर होते हैं। आओ जानते हैं दीपक के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां। दीपक कई प्रकार के होते हैं, जैसे चांदी के दीपक, मिट्टी के दीपक, लोहे के दीपक, ताम्बे के दीपक, पीतल की धातु से बने हुए दीपक तथा आटे से बनाए हुए दीपक। दीपावली पर मिट्टी के दीपक ही जलाने का महत्व है। मिट्टी के दीपक अधिक शुभ होते हैं। आओ जानते हैं कि कौन-सा दीप किस हेतु जलाया जाता है? 1. आटे का दीपक किसी भी प्रकार की साधना या सिद्धि हेतु आटे का दीपक बनाते हैं और इसे ही पूजा करने के लिए सबसे उत्तम मानते हैं। 2. घी का दीपक आर्थिक तंगी से मुक्ति पाने के लिए रोजाना घर के देवालय में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए। इससे देवी-देवता भी प्रसन्न होते हैं। आश्रम तथा देवालय में अखंड ज्योत जलाने के लिए भी शुद्ध गाय के घी का या तिल के तेल का उपयोग किया जाता है।